BJP Faces Problem of Plenty ahead Delhi Polls – दिल्ली चुनाव: बीजेपी के सामने ‘प्रॉब्लम ऑफ प्लेंटी’, कई सीटों पर उम्मीदवार चयन में कंफ्यूजन – Delhi Elections BJP faces Problem of Plenty as confusion in candidate selection on many seats ntc


दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने में बीजेपी के सामने ‘प्रॉब्लम ऑफ प्लेन्टी’ यानी ‘बहुतायत की समस्या’ एक चुनौती बन सकती है. गत 26 वर्षों से दिल्ली की सत्ता से बाहर रहने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए इस बार हालात अनुकूल प्रतीत होते हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी (AAP) को राष्ट्रीय राजधानी में 10 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही, कांग्रेस भी इतनी मजबूत नहीं है कि वह अपने बलबूते सत्ता में आ सके.

इस बार के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को बड़ा झटका लगा था, जब उसके मतदान प्रतिशत में गिरावट आई थी, फिर भी वह दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही. बीजेपी के खिलाफ AAP और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. लोकसभा चुनावों के बाद, बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में बड़ी जीत हासिल की और यहां तक कि जम्मू और कश्मीर के चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन किया. हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए बीजेपी की पृष्ठभूमि अनुकूल है, लेकिन पार्टी कुछ चुनौतियों का सामना कर रही है.

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सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवारों को लेकर है. पार्टी ने कई अन्य दलों के नेताओं को अपने साथ जोड़ा है, जिससे कुछ सीटों पर दावेदारों की संख्या बढ़ गई है. कुछ सीटों पर बीजेपी के मौजूदा विधायक भी हैं, लेकिन फिर भी पार्टी ने दूसरे दलों से वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया है. इन स्थितियों में, बीजेपी को विचार करना होगा कि वह कैसे पात्र और योग्य उम्मीदवारों को चुनेगी, जो न सिर्फ जीत दिला सकें बल्कि बाकी समीकरणों को भी गड़बड़ाने ना दें.

गांधी नगर (अनिल बाजपेयी बनाम अरविंदर सिंह लवली)

2020 के दिल्ली चुनाव में गांधी नगर सीट पर दो प्रमुख उम्मीदवारों के बीच एक दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला था. भाजपा उम्मीदवार अनिल बाजपेयी ने कांग्रेस प्रत्याशी अरविंदर सिंह लवली को पराजित किया था. इससे पहले 2015 में बाजपेयी ने आम आदमी पार्टी (AAP) के टिकट पर इसी सीट से जीत दर्ज की थी, जबकि लवली ने चुनाव नहीं लड़ा था. 2020 के चुनाव के ठीक पहले, बाजपेयी ने AAP से भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया, जिससे यह मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया. हालांकि, यह चुनाव लवली के लिए कठिन साबित हुआ और उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. 

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अरविंदर सिंह लवली दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सरकार में वरिष्ठ मंत्री रह चुके हैं और क्षेत्र में खासा प्रभाव रखते हैं. मौजूदा हालातों में, लवली ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है और अब उन्हें गांधी नगर सीट से टिकट मिलने की आशा है. अगर ऐसा होता है, तो दो बार के विधायक रहे बाजपेयी को सीट छोड़नी पड़ेगी. यह भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. क्योंकि इस सीट का भाजपा के पक्ष में इतिहास नहीं रहा है. विशेषकर जब इस क्षेत्र में लगभग 25% मुस्लिम मतदाता हैं, जो पारंपरिक रूप से भाजपा समर्थक नहीं माने जाते. भाजपा को इस बार गांधी नगर में अपने समीकरण को सही करना होगा ताकि वह इस चुनौतीपूर्ण सीट पर जीत हासिल कर सके.

विश्वास नगर (ओपी शर्मा बनाम नसीब सिंह)

पूर्वी दिल्ली के विश्वास नगर सीट पर बीजेपी को एक अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. 2015 और 2020 के चुनावों में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा की 70 में से क्रमश: 67 और 63 सीटें जीती थीं. इसके बावजूद बीजेपी ने विश्वास नगर सीट को दोनों बार अपने पास बनाए रखा. ओपी शर्मा ने 2013 के बाद से दिल्ली में चली आ रही AAP की लहर के बावजूद इस सीट पर लगातार तीन बार जीत हासिल की. यदि सामान्य परिस्थितियों में देखा जाए तो ओपी शर्मा, जो दिवंगत अरुण जेटली के करीबी सहयोगी माने जाते थे, आसानी से विश्वास नगर का टिकट प्राप्त कर सकते थे. लेकिन इस बार समीकरण कुछ बदले हुए हैं.

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कांग्रेस के टिकट पर कई बार विश्वास नगर सीट जीत चुके नसीब सिंह ने कुछ महीने पहले बीजेपी में शामिल होकर इस सीट पर अपनी दावेदारी पेश की है. नसीब सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के संसदीय सचिव के रूप में भी कार्य किया था और उन्हें इस विधानसभा क्षेत्र का एक प्रमुख चेहरा माना जाता है. ओपी शर्मा और नसीब सिंह के अलावा, कुछ अन्य वरिष्ठ नेता भी इस सीट पर नजर बनाए हुए हैं. क्योंकि पिछले कुछ चुनावों में यह पार्टी के लिए फेवरेबल सीट रही है. ऐसे में विश्वास नगर का टिकट किसे मिलेगा, यह निश्चित रूप से दिलचस्प होगा. सीट पर टिकिट के दावेदारों के चलते बीजेपी के सामने पोस्टर ब्वॉय जिताने से अधिक चुनौती इस बार भीतरघात की हो सकती है.

नजफगढ़ (कैलाश गहलोत बनाम नीलम कृष्ण पहलवान बनाम जय किशन शर्मा)

भाजपा के लिए नजफगढ़ में समीकरण विशेष रूप से दिलचस्प है. आम आदमी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने चुनाव से ठीक पहले भाजपा का दामन थामा है. अब वह इस सीट के लिए सबसे संभावित उम्मीदवार बनकर उभरे हैं, लेकिन पार्टी के भीतर ही एक दर्जन से अधिक आकांक्षी हैं, जो आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा से टिकट मांग रहे हैं. इसके अलावा भाजपा ने दिल्ली नगर निगम की पूर्व स्थायी समिति के अध्यक्ष रहे जय किशन शर्मा को कांग्रेस से तोड़कर अपने पाले में किया है. अब शर्मा भी नजफगढ़ से अपने बेटे के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं. इस किस्म की चुनौती को देखते हुए कैलाश गहलोत ने पड़ोस की सीट बिजवासन से भी लड़ने का मन बनाया हुआ है, लेकिन वहां भी बीजेपी के कद्दावर नेता, जिनमें पूर्व विधायक और पार्षद भी शामिल हैं, उनका विरोध उन्हें झेलना पड़ रहा है.

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कैलाश गहलोत और जय किशन शर्मा अकेले बाहरी दावेदार नहीं हैं. मजबूत नेता कृष्ण पहलवान की पत्नी, नीलम कृष्ण पहलवान, जो पहले इनेलो के साथ थीं और एक पार्षद भी हैं, वह भी टिकट की चाहत रखती हैं. यदि उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उनमें से कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़े हो सकते हैं और पार्टी के लिए समस्याएं खड़ी कर सकते हैं. यह स्थिति भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, क्योंकि कई उम्मीदवारों के अचानक उभरने से पार्टी की रणनीति और एकता पर असर पड़ सकता है.

कस्तूरबा नगर में मीनाक्षी लेखी या नीरज बसोया या फिर कोई और

सूत्रों के अनुसार नई दिल्ली की पूर्व सांसद मीनाक्षी लेखी कस्तूरबा नगर सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं. उनकी संभावित उम्मीदवारी ने राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी है, और यह मुकाबला और भी रोचक हो गया है. जाति समीकरण के मामले में परिस्थिति और जटिल हो गई है, क्योंकि कुछ महीने पहले ही कांग्रेस के पूर्व विधायक नीरज बसोया, जिन्होंने इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था, भाजपा में शामिल हुए हैं. उनका प्रवेश एक दिलचस्प सामाजिक समीकरण पेश करता है, क्योंकि बसोया और वर्तमान आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक मदन लाल, दोनों ही गुर्जर समुदाय से हैं. एक चौंकाने वाले निर्णय में, AAP ने तीन बार के विधायक मदन लाल को टिकट नहीं दिया है और इसके बजाय भाजपा के नेता रमेश पहलवान को चुना है, जिससे चुनावी मुकाबला और भी तीखा हो गया है. 

वहीं, कांग्रेस ने पंजाबी समुदाय से जुड़े युवा उम्मीदवार अभिषेक दत्त को मैदान में उतारा है, जो नई ऊर्जा के साथ अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं. उनकी उम्मीदवारी यह संकेत देती है कि कांग्रेस इस निर्वाचन क्षेत्र के व्यापक जनसंख्या आधार को आकर्षित करने की रणनीति बना रही है. वहीं, भाजपा के भीतर, पूर्व विधायक सुशील चौधरी के परिवार का भी टिकट पाने की होड़ जारी है, जिससे आंतरिक प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है. अगर मीनाक्षी लेखी को वाकई मैदान में उतारा जाता है, तो भाजपा को अपने आंतरिक तालमेल और विभिन्न गुटों और नेताओं के बीच संतुलन बैठाने में कुशलता दिखानी होगी.

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लक्ष्मी नगर (अभय वर्मा बनाम नितिन त्यागी)

लक्ष्मी नगर में बीजेपी के लिए टिकट वितरण एक जटिल चुनौती बन गई है. यह क्षेत्र उन आठ सीटों में से एक है, जहां भाजपा के अभय वर्मा ने 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के नितिन त्यागी को एक कठिन मुकाबले में हराया था. अब, कुछ महीने पहले नितिन त्यागी ने भाजपा का दामन थाम लिया है और स्वाभाविक रूप से वह इस सीट से एक मजबूत दावेदार बन गए हैं. नितिन त्यागी के भाजपा में शामिल होने के बाद, भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता बीबी त्यागी ने AAP का समर्थन किया और उन्हें पार्टी की ओर से टिकट भी मिल गया है. इसके चलते वह भाजपा के कुछ पारंपरिक कैडर वोट भी खींच सकते हैं. इस स्थिति ने भाजपा के लिए एक नई दुविधा उत्पन्न कर दी है.

भाजपा की समस्या यह है कि उन्हें लक्ष्मी नगर सीट से 2015 में AAP के टिकट पर निर्वाचित नितिन त्यागी को अपना उम्मीदवार बनाना चाहिए या 2020 के विजेता अभय वर्मा को. अभय वर्मा वर्तमान विधायक हैं और उन्होंने पिछली बार इस सीट को भाजपा के लिए जीता था. दूसरी ओर, नितिन त्यागी का भाजपा में शामिल होना और उनकी पूर्ववर्ती भूमिका भी उन्हें काफी मजबूत दावेदार बनाती है. भाजपा के सामने यह कठिन निर्णय है कि वह किसे अपना उम्मीदवार बनाए, क्योंकि इस निर्णय का सीधा प्रभाव आगामी चुनाव में पार्टी की संभावना पर पड़ेगा.



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