उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ में रौनक बरस रही है. इस मेले में हर कोने से साधु-संतों का जमावड़ा लगा है. लेकिन इन सबके बीच जो आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं, वो हैं जूना अखाड़े के महंत राजपुरी जी महाराज, जिन्हें लोग प्यार से ‘कबूतर वाले बाबा’ कहते हैं. बाबा अपने सिर पर बैठे कबूतर के साथ जहां भी जाते हैं, वहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. उनके सिर पर 9 सालों से कबूतर ने डेरा डाल रखा है.
कौन हैं कबूतर वाले बाबा?
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से आए बाबा का कहना है कि जीव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है. पिछले कई सालों से वह अपने सिर पर एक कबूतर के साथ घूम रहे हैं. महाकुंभ के पवित्र संगम में बाबा का यह अनोखा रूप हर किसी का ध्यान खींच रहा है. लोग उनकी एक झलक पाने के लिए उमड़ रहे हैं. बाबा और उनके वफादार कबूतर को देख तीर्थयात्री मंत्रमुग्ध हो रहे हैं. उनके पास आने वाले भक्त न केवल आशीर्वाद लेते हैं बल्कि बाबा की शिक्षाओं को सुनकर आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं.
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‘जीव सेवा ही सबसे बड़ी सेवा’
बाबा के अनुसार, गौसेवा, गोरू सेवा और नंदी सेवा सबसे महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना है कि जो लोग प्राणियों की सेवा करते हैं, उन्हें अद्भुत आध्यात्मिक फायदा हासिल होता है. श्रद्धालु न केवल बाबा से प्रेरित हो रहे हैं, बल्कि उनके संदेश को जीवन में अपनाने की कोशिश कर रहे हैं.
जीव सेवा के संदेश से छाए बाबा
बाबा का सिर पर कबूतर लेकर चलना न केवल उनकी पहचान बन गया है, बल्कि महाकुंभ की विविधता और गहराई को भी दर्शाता है। बाबा का संदेश है कि जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम और सम्मान ही सच्चा धर्म है।.उनकी उपस्थिति महाकुंभ को और भी विशेष बना रही है, जहां हर प्राणी के प्रति करुणा और दया का संदेश गूंज रहा है.