दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 अरविंद केजरीवाल – Delhi Assembly Election History: जब केजरीवाल ने कर ली शीला की बराबरी, BJP के हाथ सिर्फ 8 तो कांग्रेस का हो गया सूपड़ा साफ – Delhi Assembly Election History aap arvind kejriwal cm bjp congress Sheila Dikshit story of 2020 poll result in delhi ntc


साल 2020. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा का सातवां चुनाव था. मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा था, लेकिन 11 फरवरी को नतीजे आए तो आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर मैदान फतह कर लिया और सरकार बना ली. अरविंद केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस की शीला दीक्षित की बराबरी कर ली. AAP की ये जीत कई मायने में अहम थी. क्योंकि दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ शाहीनबाग में आंदोलन चल रहा था. बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर हमलावर थी और आंदोलन के पीछे हाथ होने का आरोप लगा रही थी. जबकि विपक्ष, बीजेपी को ध्रुवीकरण पर घेर रहा था. पूरा चुनाव ही इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द बना रहा.

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 को भारतीय राजनीति के लिए बेहद खास और ऐतिहासिक माना जाता है. यह चुनाव मुख्य रूप से स्थानीय मुद्दों बनाम राष्ट्रीय एजेंडे का टकराव था, जिसमें AAP ने बाजी मारी और बीजेपी-कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को तीसरी बार सत्ता से दूर कर दिया. AAP ने 62 सीटें जीतीं और 53.57% वोट हासिल किए. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 8 सीटें जीतीं और 38.51% वोट हासिल किए. BJP का वोट शेयर 2015 के मुकाबले बढ़ा, लेकिन यह सीटों में तब्दील नहीं हो सका. कांग्रेस का लगातार दूसरी बार फिर पत्ता साफ हो गया और खाता तक नहीं खुल सका. कांग्रेस का वोट शेयर भी गिरकर 4.26% पर आ गया.

AAP ने जीता जनता का भरोसा

आम आदमी पार्टी को उसके काम और योजनाओं की बदौलत शानदार जनादेश मिला. AAP ने चुनावी अभियान में स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखा और अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने पेश किया. शिक्षा का मॉडल, मोहल्ला क्लीनिक के जरिए सुलभ और किफायती स्वास्थ्य सुविधाएं, फ्री बिजली-पानी योजना और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा जनता की पहली पसंद बनी. 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली और 20,000 लीटर मुफ्त पानी की योजना को जनता के बीच खूब सराहना मिली.

Arvind Kejiwal

दिल्ली की डीटीसी और क्लस्टर बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा ने आधा आबादी को AAP के पक्ष में लामबंद किया. सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढांचे में सुधार, स्मार्ट क्लासरूम और शिक्षकों की गुणवत्ता को बढ़ावा दिए जाने से लोगों में बेहतर भविष्य की उम्मीदें जगीं. AAP ने लोगों से खुद को जोड़ने के लिए ‘बच्चा-बच्चा केजरीवाल’ जैसे नारे दिए.

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AAP के लिए चुनौती थे 2020 के चुनाव

2020 का चुनाव AAP के लिए भी बेहद अहम था. क्योंकि यह उसके अपने काम का जनमत संग्रह था. 2015 में AAP ने रिकॉर्ड 67 सीटें जीती थीं, जो अभूतपूर्व थीं. 2020 में AAP पर दबाव था कि वो उस सफलता को दोहराए और जनता का विश्वास बनाए रखे. चुनाव में केजरीवाल शॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए भी आगे बढ़ते देखे गए. जब बीजेपी राम मंदिर की बात कर रही थी तो केजरीवाल ने हनुमान चालीसा का पाठ किया और हनुमान मंदिरों में जाकर दर्शन किए. केजरीवाल ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वो हिंदू हैं, लेकिन उनकी राजनीति बीजेपी वाले हिंदुत्व की नकल नहीं है.

बगावत से जूझ रही थी आम आदमी पार्टी

इस चुनाव में आम आदमी पार्टी दलबदल और बगावत से भी जूझ रही थी. ऐसे में केजरीवाल के सामने संगठन में एकता और जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाने की चुनौती थी. चुनाव से पहले AAP के कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी या अन्य दलों में शामिल हो गए थे. पूर्व मंत्री और विधायक कपिल मिश्रा ने बीजेपी जॉइन कर ली थी. पूर्व विधायक अलका लांबा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. पार्टी के वरिष्ठ नेता आशुतोष और आशीष खेतान ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी. कुमार विश्वास जैसे बड़े नेता और संस्थापक सदस्य भी पार्टी से दूर हो चुके थे. ये सभी चेहरे 2015 की शानदार चुनावी सफलता के पीछे केजरीवाल के साथ खड़े थे. राजनीतिक सलाहकार योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण भी अलग हो गए थे. ऐसे में अगर AAP चुनाव हारती तो यह एक बड़ा झटका होता. इसलिए यह चुनाव AAP के अस्तित्व और भविष्य के लिए अहम था. AAP ने अपने काम और जमीनी संगठन के दम पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

Arvind Kejiwal

मोदी लहर में लगातार दूसरी बार दिल्ली हारी बीजेपी

दिल्ली में ये दूसरा ऐसा चुनाव था, जब केंद्र में मोदी सरकार थी और देश में मोदी लहर चल रही थी. 2015 में हार के बीजेपी सतर्क थी और 2020 में सिर्फ जीत के लिए पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी. 2014 लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप, MCD में लगातार जीत और उसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव में भी स्वीप के बावजूद बीजेपी केजरीवाल के मुकाबले एक भी नेता को आगे नहीं कर पाई. दरअसल, पार्टी के भीतर गुटबाजी हावी थी. इसे दबाए रखने के लिए ही पार्टी ने पहली बार मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा नहीं की. इसका गलत संदेश गया. 

इससे पहले 2015 में बीजेपी ने वोटिंग से चंद दिन पहले किरण बेदी को सीएम चेहरा घोषित किया था. लेकिन, दिल्ली को किसी स्थानीय नेता को आगे करने की दरकार थी. बीजेपी ने बहुसंख्यकों को लुभाने के लिए शाहीन बाग आंदोलन का मुद्दा उठाया. इसके अलावा, उन स्विंग सीटों पर भी फोकस किया, जहां 2015 में उसे मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. 

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चर्चा में रहे विवादास्पद बयान 

बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे चुनाव लड़ने का दांव लगाया और नतीजों में ज्यादा फेरबदल नहीं हो पाया. सालभर पहले 2019 में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीती थीं. 2020 के चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के कुछ नेताओं के विवादास्पद बयान भी दिए. ‘देश के गद्दारों को गोली मारो’, ने जनता के बीच गलत संदेश दिया और इसका असर वोटिंग पर पड़ा. बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने दिल्ली के रिठाला में आयोजित चुनावी रैली में कहा था कि गद्दारों को भगाने के लिए नारे भी चाहिए. वहीं, इसी मंच पर मौजूद बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने कहा था कि कमल का बटन दबाने पर ही ये गद्दार मरेंगे. कैंपेन के दौरान बीजेपी ने केजरीवाल को ‘आतंकवादी’ तक कहा.

कांग्रेस का खिसक गया पूरा जनाधार

दिल्ली में कांग्रेस ने 1998, 2003 और 2008 में लगातार तीन बार जीत हासिल की थी. 2013 में कांग्रेस पिछड़ गई और शीला दीक्षित भी चुनाव हार गईं. कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक AAP में शिफ्ट हो गया. 2015 में फिर चुनाव हुए तो शीला दीक्षित ने दूरी बना ली. इस चुनाव में रही-सही कसर पूरी हो गई और कांग्रेस का पूरा जनाधार ही खिसक गया और AAP में शिफ्ट हो गया. क्योंकि, बीजेपी का वोटर शेयर लगभग स्थिर रहा.

Arvind Kejiwal

दूसरी बार जीरो पर सिमटी कांग्रेस

2015 के बाद 2020 के चुनाव में भी कांग्रेस जीरो पर सिमट गई. यह दूसरा ऐसा मौका था, जब पार्टी दिल्ली में खाता ही नहीं खोल पाई. कांग्रेस को 2020 में वापसी की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी पूरी तरह विफल रही. पार्टी ना तो कोई प्रभावी मुद्दा उठा पाई और ना ही कोई मजबूत चेहरा पेश कर सकी. 

तो आंकड़ों में होता फेरबदल…

जानकारों ने कहा, कमजोर रणनीति की वजह से कांग्रेस हारी. अगर कांग्रेस और अन्य दल का प्रदर्शन अच्छा रहता तो इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिल सकता था और AAP को इसका नुकसान उठाना पड़ता. सीटों की टेली में भी अंतर साफ दिखता. 2015 में भी कांग्रेस और अन्य दलों के कमजोर प्रदर्शन का लाभ आम आदमी पार्टी को मिला था.

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कांग्रेस के पास रणनीति की थी कमी

चूंकि, कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए स्पष्ट रणनीति की कमी थी. पार्टी ने ना तो कोई बड़ा मुद्दा उठाया और ना ही जनता को लुभाने वाले वादे किए. कांग्रेस के पास मजबूत स्थानीय नेतृत्व और चेहरा नहीं था. शीला दीक्षित की अनुपस्थिति के बाद पार्टी नेतृत्व में खालीपन साफ नजर आया. कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक पूरी तरह से AAP की ओर खिसक गया था. गरीब तबके और मुस्लिम समुदाय का बड़ा हिस्सा AAP को समर्थन देता नजर आया. कांग्रेस जनता के सामने कोई नई योजना या विजन पेश करने में नाकाम रही.

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हालांकि, केजरीवाल और शीला दीक्षित में एक समानता यह है कि दोनों ने लगातार तीन बार अपनी पार्टी की सरकार बनाई और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की हैट्रिक पूरी की. कांग्रेस की शीला दीक्षित लगातार 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. 

529 उम्मीदवारों की जमानत हो गई थी जब्त

चुनाव में कुल 672 उम्मीदवार मैदान में थे. 529 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. बीजेपी, कांग्रेस समेत 96 पार्टियों ने चुनाव में हिस्सा लिया था. 148 निर्दलीय चुनाव लड़े थे और 0.38% वोट हासिल किए थे. 58 सीटें सामान्य थीं. 12 सीटें एससी के लिए रिजर्व थीं. चुनाव में 14797990 वोटर्स रजिस्टर्ड थे. 9256576 वोटर्स ने मतदान किया था. 62.55 प्रतिशत वोटिंग हुई थी.

Supporter of the Aam Aadmi Party holds a sign that before Arvind Kejriwal's swearing-in ceremony as Delhi Chief Minister, in New Delhi on February...

बीजेपी को कहां मिली थी जीत?

बीजेपी को लक्ष्मी नगर, विश्वास नगर, रोहतास नगर, गांधीनगर, घोंडा, करावल नगर, रोहिणी, बदरपुर में जीत मिली है. दिल्ली की 70 में से 6 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान वोटर्स की संख्या 40 फीसदी से ज़्यादा है और यह सभी सीटें आम आदमी पार्टी जीती थी. बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी. इन सीटों में ओखला, बल्लीमारान, मटिया महल, मटियाला, सीलमपुर और मुस्तफ़ाबाद का नाम शामिल है. 

बीजेपी ने कुल 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. जबकि AAP ने सभी 70 सीटों पर कैंडिडेट खड़े किए थे. पार्टी ने 2020 में 15 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे थे. कांग्रेस ने कुल 66 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 63 सीटों पर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. गांधी नगर से अरविंदर सिंह लवली, बादली से देवेंद्र यादव और कस्तूरबा नगर से अभिषेक दत्त अपनी जमानत बचाने में सफल रहे थे. चुनाव में कुल 8 महिला विधायक चुनी गईं थीं. 2015 में AAP के टिकट पर चांदनी चौक सीट जीतने वाली अलका लांबा की जमानत भी जब्त हो गई थी.

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अगर कोई उम्मीदवार विधानसभा सीट में डाले गए कुल वैध मतों का छठा हिस्सा पाने में विफल रहता है तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है. विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार मतदान से पहले चुनाव आयोग को 10,000 रुपये जमा करते हैं. अगर वे कुल मतों का छठा हिस्सा पाने में विफल रहते हैं तो उनकी जमानत राशि जब्त हो जाती है.

Prime Minister Narendra Modi arrives for addressing BJP campaign rally at Dwarka for upcoming Delhi election 2020 on February 4, 2020 in New Delhi,...

सिसोदिया 3207 वोटों से जीत पाए थे चुनाव

हालांकि, 2020 में कई सीटों पर बीजेपी और AAP उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी. कुछ सीटों पर उम्मीदवारों के बीच हार-जीत का फर्क बेहद कम रहा. कुछ पर पहले और दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार के बीच मतों का अंतर काफी ज्यादा रहा. बिजवासन से आम आदमी पार्टी के भूपेंद्र सिंह को 753 वोटों से जीत मिली थी. पटपड़गंज से मनीष सिसोदिया आखिरी समय तक बीजेपी उम्मीदवार से पीछे रहे. अंत में सिसोदिया को सिर्फ 3,207 वोटों से जीत मिल सकी थी. आदर्श नगर से पवन शर्मा ने 1,589 वोटों से जीत हासिल की थी. कस्तूरबा नगर से AAP के मदन लाल को 3,165 वोटों से जीत मिली थी. लक्ष्मी नगर से बीजेपी के अभय वर्मा को सिर्फ 880 वोटों से जीत मिली थी. 

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दिल्ली में चल रहा था आंदोलन

दरअसल, 2020 के चुनाव के दौरान दिल्ली के शाहीन बाग में CAA के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन एक बड़ा मुद्दा बन गया था. शाहीन बाग में महीनों से चले आ रहे धरने को बीजेपी ने चुनाव प्रचार में जोर-शोर से उठाया और इसे राष्ट्रवाद और कानून-व्यवस्था से जोड़ने की कोशिश की. बीजेपी नेताओं ने शाहीन बाग को चुनावी मंच पर उभारा, लेकिन यह रणनीति दिल्ली के वोटर्स को पसंद नहीं आई. AAP ने इन मुद्दों पर बयानबाजी से दूरी बनाए रखी और पूरे चुनाव में अपनी विकास योजनाओं और कामकाज पर फोकस किया. चुनाव के ठीक बाद फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिसमें कई लोगों की जान गई और बड़ी संख्या में संपत्ति का नुकसान हुआ. इन घटनाओं के कारण दिल्ली का राजनीतिक माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया था.

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